आंदोलित,छात्रों,से निवेदन है की वह किसी के भड़काने,पर हिंसक गतिविधियों में भाग न लें इससे आपकी क्रिमिनल,हिस्ट्री,बनेगी भविष्य में न तो नौकरी मिलेगी बल्कि 5 साल की जेल
इन आंदोलित छात्रों के अभिवावको से निवेदन है की वह अपने बच्चों को समझाए राष्ट्र विरोधी तत्वों वा स्वार्थी कोचिंग माफिया का उन्हें टूल न बनने दें वरना वे नीच लोग आपके बच्चों को भड़का कर उनका भविष्य चौपट कर देंगे।
:-विकास पाराशर अधिवक्ता सर्वोच्च्य न्यायालय
क्या कहता है कानून:-
सार्वजनिक संपत्ति की होने वाले नुकसान को देखते हुए संसद में वर्ष 1984 में कानून बनाया जिसे (Prevention of damage to public property act,1984) सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम,1984 के रूप में जाना जाता है।
इस कानून में कुल 7 धाराओं का जिक्र किया गया है, इसके अंतर्गत वैसा कोई भी व्यक्ति जो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाएगा उसे 6 माह से लेकर 5 साल तक कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
इस कानून के तहत यह प्रावधान किया गया है कि आग से या विस्फोट से सरकारी संपत्ति को बर्बाद करने वाले लोगों को कठोर सजा सुनाई जाएगी जिसके तहत वैसे लोगों को 10 वर्ष तक कारावास और जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों पर कड़ाई से नियम लागू करवाने के लिए वर्ष 2007 में स्वत संज्ञान लेते हुए यह पाया कि 1984 का सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम वर्तमान समय के लिए अपर्याप्त हो चुका है अथवा
उसमें संशोधन की जरूरत है जिसे देखते हुए न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के.टी.थॉमस और वरिष्ठ वकील फली नरीमन समिति बनाई।
न्यायाधीश के.टी.थॉमस की अध्यक्षता वाली समिति के अनुसार सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम,1984 के नियमों को और सख्त करने की आवश्यकता है जिसमें हिंसक प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान के लिए नेताओं और आयोजन करनेवालों को जवाबदेह बनाया जाए।
● न्यायालय ने कहा अगर प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान होता है तो इसकी भरपाई आरोपी से की जाएगी।
● न्यायालय ने कहा कि यह आरोपी को साबित करना होगा कि जो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा है उसमें उसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से भाग नहीं लिया है।
● न्यायालय ने कहा अगर विरोध प्रदर्शन के दौरान संपत्ति का ज्यादा नुकसान होता है तो उच्च न्यायालय इसमें स्वतः संज्ञान लेते हुए दोषी लोगों के खिलाफ मुकदमा चलाने की कार्रवाई शुरू कर सकता है।
● एक से अधिक राज्यों में होने वाली हिंसा के मामले में सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई शुरू कर सकता है