पञ्चगव्य असाध्य से असाध्य बीमारियों को भी ठीक कर सकता है* – स्वामी गोपालानंद सरस्वती

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*पञ्चगव्य असाध्य से असाध्य बीमारियों को भी ठीक कर सकता है* – स्वामी गोपालानंद सरस्वती

सुसनेर। मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन जी यादव द्वारा मध्य प्रदेश के निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में भारतीय नूतन वर्ष २०८१, से  घोषित *गो रक्षा वर्ष*  के तहत जनपद पंचायत सुसनेर की समीपस्थ ननोरा,श्यामपुरा, सेमली व सालरिया ग्राम पंचायत की सीमा पर स्थित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में  चल रहें *एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव के 100 वे दिवस पर  श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए  स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती महाराज ने विठल भगवान की महिमा का गुणगान किया। महाराष्ट्र में आज के दिन सबसे बड़ा उत्सव होता है, जैसे मध्यप्रदेश के उज्जैन में शिवरात्रि बड़ा उत्सव होता है व नलखेड़ा में नवरात्रि पर बड़ा उत्सव होता है वैसे ही महाराष्ट्र के पंढरपुर में आज सबसे बड़ा उत्सव है पूरे महाराष्ट्र से 10 लाख से अधिक लोग विट्ठल विट्ठल गाते वहां पहुंचते है । सबके चेहरे पर एक मुस्कुराहट, माथे पर भारतीय संप्रदाय का तिलक, भारतीय संप्रदाय की सफेद टोपी, धोती और हाथ में मजीरे बजाते गाते हुए चलते है
*सर्वे भवन्तु सुखिन सर्वे संतु निरामय* अर्थात हम सभी के लिए प्रार्थना करे ठीक है लेकिन जब मुक्ति की बात आती है तब आत्मा के बारे में महाराज जी ने कहा की आत्मा एक ही है और जब हम अपनी मुक्ति की प्रार्थना करेंगे तब सभी की मुक्ति के मार्ग खुल जायेंगे। *एक की मुक्ति कईयों की मुक्ति का कारण बन जाती है*।
स्वामीजी ने राक्षस की व्याख्या करते हुवे  बताया कि राक्षस के सींग नही होते, पूंछ भी नही होती, लंबे दांत भी नहीं होते। राक्षस का मतलब जो अहंकार रखे, जो क्रोध करे, जो झूठ बोले, जो धोखा दे, जो असत्य भाषण करे, जो मर्यादाओं का उलंघन करे, जो नीति पर नहीं चले वह राक्षस है। अर्थात *जो अंदर से कुछ और तथा बाहर से कुछ वही तो राक्षस होते है*
पंचगव्य की महिमा बताते हुवे स्वामीजी ने कहा की पंचगव्य गोमाता के गोबर का रस, गोमूत्र,दूध, दही और घी को मिलाकर बनाया जाता है। पंचगव्य अमृत के समान होता है। *पंचगव्य के सेवन से असाध्य रोगों में लाभ मिलता है*। इंसान इसके सेवन से पाप मुक्त हो सकता है।
गोमाता के गोबर को जलाकर जो भस्म तैयार होती है वही सबसे पवित्र भस्म है। प्रतिदिन ऐसी भस्म का तिलक लगाना चाहिए, इससे मन मस्तिष्क ठीक रहता है।गर्भवती महिलाओं के कक्ष में भस्म रखने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
अग्नि पुराण में लिखा है *गोमाता की श्वास से पृथ्वी भी पवित्र हो जाती है*। ओर गोमाता के स्पर्श से मानव पवित्र हो जाता है। गोमाता के चरणों की धुली भी अतिपवित्र होती है।
*100 वे दिवस पर श्री ज्ञानेश्वर चोपड़ा,श्री बद्री प्रसाद, नागपुर महाराष्ट्र एवं श्री सत्यनारायण नोखा मंडी बीकानेर ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया* ।
*100 वे दिवस पर चुनरी यात्रा दिल्ली एवं राजस्थान के झालावाड़ जिले की रायपुर तहसील से*
एक वर्षीय गोकृपा कथा के 100 वें दिवस पर पश्चिम विहार नई दिल्ली निवासी श्री गोपाल गुप्ता के परिवार एवं राजस्थान के झालावाड़ जिले की रायपुर तहसील के हिम्मतगढ़ ग्राम से नन्दलाल गुर्जर, गोरधन सिंह गुर्जर, बाल चंद गुर्जर, मोहन लाल दांगी,,फूल चन्द दांगी,भगवान सिंह गुर्जर, ईश्वर सिंह गुर्जर, गोरधन लाल दांगी,मोहन लाल चौधरी, रतन लाल मेहर,गोरी लाल दांगी के साथ सैंकड़ों मातृ शक्ति,युवा अपने नगर /ग्राम के जन कल्याण के लिए गाजे बाजे के साथ  कथा मंच पर विराजित भगवती गोमाता को चुनरी ओढ़ाई एवं गोमाता का पूजन कर स्वामी गोपालानंद सरस्वती महाराज से आशीर्वाद लिया और अंत में सभी ने गो पूजन, गो पुष्टि यज्ञ करके यज्ञशाला की परिक्रमा एवं गोष्ठ में गोसेवा करके सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया।
चित्र 1 : गोकथा सुनाते स्वामी गोपालानंद सरस्वती।

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