तीन महीने, में 80 लाख लोगों ने अपनी, भविष्य, निधि, यानी पीएफ़, की गुल्लक, फोड़कर, पैसे निकाले हैं,

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तीन महीने, में 80 लाख लोगों ने अपनी, भविष्य, निधि, यानी पीएफ़, की गुल्लक, फोड़कर, पैसे निकाले हैं,

और गुल्लक का नाम यूं ही नहीं लिया गया. जैसे मिट्टी की गुल्लक फोड़े बिना पैसे नहीं निकलते, वैसे ही पीएफ से पैसे निकालना भी आसान काम नहीं है. ये फंड बनाया ही इसलिए गया था ताकि जब इन्सान की कमाई के बाकी सब रास्ते बंद हो चुके हों तब भी वो इसके भरोसे अपनी आगे की ज़िंदगी गुजार सके.और गुल्लक का नाम यूं ही नहीं लिया गया.

इसीलिए प्रॉविडेंट फंड से पैसा निकालने के नियम बहुत कड़े हैं और नौकरी में रहते हुए इससे पैसा निकालना बेहद टेढ़ी खीर है.

लेकिन कोरोना महामारी के साथ ही आए आर्थिक संकट से राहत देने के लिए सरकार ने सबसे पहले जिन क़दमों का एलान किया था उनमें से एक बड़ा क़दम पीएफ़ से पैसा निकालने की सुविधा देना भी था.

जो लोग रोज़गार में नहीं रहे उन्हें तो पीएफ़ का पैसा यूं भी कुछ समय बाद मिल ही जाता. मगर जो लोग काम पर होते हुए भी खुद को तंगी में फंसा पा रहे थे, उनके लिए ये एक लाइफ़लाइन जैसी ही थी.

हालांकि मेरी राय तब भी यही थी और आज भी है कि आपको अपनी पीएफ़ की रकम जब तक संभव हो छेड़नी नहीं चाहिए. लेकिन अब जो आंकड़े सामने आते हैं वो दिखाते हैं कि लगभग 30 लाख लोग शायद ऐसी ही हालत में पहुंच चुके थे कि उनके सामने और कोई रास्ता नहीं बचा था.

30 हज़ार करोड़ रुपये की निकासी

यही 30 लाख लोग हैं जिन्होंने कोविड संकट के कारण मिली विशेष सुविधा का फ़ायदा उठाते हुए पीएफ़ से पैसा निकाला है. लेकिन अखबारों में ईपीएफ़ओ के हवाले से छपी ख़बरों के मुताबिक अप्रैल से जून के बीच कुल मिलाकर करीब 80 लाख लोगों ने 30 हज़ार करोड़ रुपए से ज़्यादा की रकम अपने पीएफ़ खातों से निकाली है.

ख़ासकर 15 हज़ार रुपए महीना तक कमानेवालों के लिए तो मुसीबत के दौर में ये एक बड़ी राहत थी जिससे उनका कुछ महीनों का गुजारा चल पाएगा. आगे ज़िंदगी रही और रोज़गार रहा तो सोचेंगे कि उस भविष्य का क्या होगा जिसकी संचित निधि में से उन्होंने पैसा निकाल लिया.

पूर्व कोयला सचिव, लेखक और बेबाक आईएएस अधिकारी अनिल स्वरूप केंद्रीय प्रॉविडेंट फंड कमिश्नर थे जब उन्होंने पीएफ़ के हिसाब किताब को ऑनलाइन करने का काम शुरू किया. उसी की वजह से आज पीएफ़ से पैसा निकालना चुटकियों का काम हो गया है, जिसके लिए पहले रिटायर्ड लोगों को महीनों या सालों पीएफ़ दफ़्तरों के चक्कर लगाने पड़ते थे.

अनिल स्वरूप का कहना है कि कोरोना संकट शुरू होते ही ज़रूरत मंदों को पीएफ़ से कुछ पैसा निकालने की छूट देना एक बहुत अच्छा फ़ैसला था. वो तो इससे आगे का भी सुझाव दे चुके हैं, उनकी राय थी कि सरकार ने जिस तरह बैंकों की किस्त और क्रेडिट कार्ड के बिल पर मॉरेटोरियम या छूट का एलान किया उसी तरह की छूट पीएफ़ में भी दी जानी चाहिए.

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